आदत थी मुझको, सौ दोस्त अज़ीज़ जो थे मेरे,
कहीं अकेले जाने का तो सवाल ही नहीं था.
आज अकेले , अपने शहर से इतनी दूर,
इस coffee-shop में बैठी हूँ,
फोन की contact list में जाने पहचाने नाम ढूँढ रही हूँ.
बड़ी शर्म आ रही है, कैसे पूछूँ? कैसे वक़्त माँगूँ किसी का?
कोई पूछे तो किसी अजनबी की सोहबत को दोस्ती बताती हूँ.
कहीं अकेले जाने का तो सवाल ही नहीं था.
आज अकेले , अपने शहर से इतनी दूर,
इस coffee-shop में बैठी हूँ,
फोन की contact list में जाने पहचाने नाम ढूँढ रही हूँ.
बड़ी शर्म आ रही है, कैसे पूछूँ? कैसे वक़्त माँगूँ किसी का?
कोई पूछे तो किसी अजनबी की सोहबत को दोस्ती बताती हूँ.
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